- ज्यादातर ई-कॉमर्स कंपनियां ग्राहकों को नो कॉस्ट ईएमआई का ऑफर दे रही हैं
- ऐसी 'नो-कॉस्ट ईएमआई' स्कीमों की वास्तविक लागत जानना जरूरी है
आज कल जब आप ऑनलाइन या ऑफलाइन शॉपिंग करते हैं तो आपको अकसर नो-कॉस्ट ईएमआई (No Cost EMI) ऑप्शन मिलता है। इसके जरिए आप टीवी और फ्रीज से लेकर हेड फोन तक खरीद सकते हैं। ज्यादातर ई-कॉमर्स कंपनियां ग्राहकों को नो कॉस्ट ईएमआई का ऑफर दे रही हैं। लेकिन बिना सोचे समझे नो-कॉस्ट ईएमआई से शॉपिंग करने पर आपको सामान की कीमत से ज्यादा दाम चुकाना पड़ सकता है। नो-कॉस्ट ईएमआई के तहत शॉपिंग करते समय सावधानी जरूरी है।
क्या है 'नो-कॉस्ट ईएमआई'?
जब ग्राहक EMI यानी किस्तों पर खरीदारी करते हैं। तो उन्हें एक तय अवधि तक सामान अमाउंट एक तय समय पर चुकाना होता है। साथ ही ब्याज भी लगता है। वहीं ग्राहकों को नो-कॉस्ट ईएमआई में केवल खरीदे गए सामान के ही पैसे EMI के रूप में अदा करने होते हैं। कंपनी के अनुसार इस पर कोई ब्याज भी नहीं चुकाना पड़ता।
'नो-कॉस्ट ईएमआई' स्कीमों की वास्तविक लागत जानना जरूरी
अर्थशास्त्री और फाइनेंस फाइनेंस एक्सपर्ट डॉ. गणेश कावड़िया (स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स,देवी अहिल्या विवि इंदौर के पूर्व विभागाध्यक्ष) बताते हैं कि हर चीज की एक कीमत होती है। इसलिए, ऐसी 'नो-कॉस्ट ईएमआई' स्कीमों की वास्तविक लागत जानना जरूरी है। नो-कॉस्ट ईएमआई के लिए वित्तीय संस्थानों के साथ समझौता किया है। नो-कॉस्ट ईएमआई होने के बावजूद भी कस्टमर से छुपाकर ब्याज लिया जाता है।
कैसे काम करती है 'नो-कॉस्ट ईएमआई'?
नो-कॉस्ट ईएमआई ज्यादा सामान बेचने के लिए अपनाया जाने वाला नुस्खा है। नो कॉस्ट ईएमआई देखकर किसी भी सामान को खरीदने की जल्दबाजी न करें उसके बारे में अच्छे से पढ़ें। बैंक दिए गए डिस्काउंट को ब्याज के रूप में वापस ले लेता है। नो-कॉस्ट ईएमआई स्कीम आम तौर पर 3 तरीके से काम करती है। पहला तरीका यह कि नो कॉस्ट EMI पर आपको प्रोडक्ट पूरी कीमत पर खरीदना होता है। इसमें कंपनियां ग्राहकों को दिए जाने वाला डिस्काउंट को बैंक को ब्याज के तौर पर देती है। दूसरा तरीका यह कि कंपनी ब्याज की राशि को पहले ही उत्पाद की कीमत में शामिल कर देती है। वहीं तीसरा तरीका होता है कि कंपनी का जब कोई सामान नहीं बिक रहा होता है तो उसे निकालने के लिए भी नो-कॉस्ट ईएमआई का सहारा लेती है।
पहला तरीका
नाम न बताने की शर्त पर एक NBFC के एग्जीक्यूटिव ने बताया कि नो कॉस्ट EMI पर आपको प्रोडक्ट पूरी कीमत पर खरीदना होता है। 'नो-कॉस्ट ईएमआई' पर भी 15 फीसदी तक ब्याज वसूला जाता है। लेकिन कंपनी और फाइनेंस कंपनी इस ब्याज को डिस्काउंट के रूप में घटाकर ग्राहक को ऐसा दिखती हैं कि उसे कोई ब्याज देना ही नहीं पड़ा है। इसे ऐसे समझें
मोबाइल फोन की लागत = 15,000 रुपए डिस्काउंट = 2,250 रुपए डिस्काउंट के बाद मोबाइल फोन की लागत = 12,750 रुपए ईएमआई के तहत कुल ब्याज का भुगतान = 2,250 रुपए आपकी ओर से चुकाई जाने वाली कीमत = 15,000 रुपए
दूसरा तरीका
इसके तहत प्रोडक्ट की कीमत में पहले से ही ब्याज जोड़कर दिखाया जाता है। मान लीजिए किसी मोबाइल की वास्तविक कीमत 15 हजार रुपए है। जबकि 'नो-कॉस्ट ईएमआई' पर इसकी कीमत 17500 हजार रुपए दिखाई जाएगी। 2500 रुपए ब्याज के रूप में ही वसूले जाते हैं।
प्रोडक्ट की असली कीमत = 15000 रुपए नो कॉस्ट ईएमआई पर लगने वाला ब्याज = 2500 रुपए स्कीम के तहत आफर प्राइस = 17500 रुपए नो कॉस्ट ईएमआई पर सामान लेने पर चुकाई गई कीमत = 17250 रुपए
तीसरा तरीका
कंपनी का जब कोई सामान नहीं बिक रहा होता है तो उसे निकालने के लिए भी नो-कॉस्ट ईएमआई का सहारा लेती है। ऐसे में सामान बेचने वाली कंपनी ब्याज की रकम कई बार अपनी जेब से फाइनेंस करने वाली संस्थाओं को देती हैं।
यहां समझें टैक्स और ब्याज का गणित
क्या कहता है कानून?
2013 में भारतीय रिजर्व बैंक ने एक सर्कुलर जारी कर कहा था कि जीरो फीसदी ब्याज जैसी कोई चीज नहीं होती। इसमें कहा गया था कि "क्रेडिट कार्ड की बकाया देनदारी पर जीरो फीसदी EMI स्कीम में ब्याज को गलत तरीके से पेश किया जाता है। इसमें अक्सर प्रोसेसिंग फीस के नाम पर ब्याज का बोझ ग्राहकों पर डाल दिया जाता है।" ऐसा ही कुछ नो-कॉस्ट ईएमआई के साथ किया जाता है।
'नो-कॉस्ट ईएमआई' पर सामान खरीदते समय बरतें सावधानी
'नो-कॉस्ट ईएमआई' पर कोई भी सामान लेने से पहले उस सामान की कीमत के बारे में अच्छे से अन्य ई कॉमर्स साइट या ऑफलाइन पता करें। इसके अलावा 'नो-कॉस्ट ईएमआई' ईमेल पर सेवा एवं शर्तों को ध्यान से पढ़ें। क्योंकि कई बार EMI चूकने या प्रोसेस फीस के मान पर नहीं पैसे वसूले जाते हैं।
एक टिप्पणी भेजें